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नई दिल्ली: उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग के कारण हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। राज्य सरकार के तमाम प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। कई जगहों पर आग नए सिरे से भड़क रही है। इस कारण दमकलकर्मियों के साथ-साथ वायुसेना को भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार और मामले से जुड़े याचिकाकर्ता केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को रिपोर्ट सौंपें। समिति रिपोर्ट के आधार पर अपनी राय बनाएगी और शीर्ष अदालत को सूचित किया जाएगा।

एक साल में जंगल में आग लगने की 398 घटनाओं के पीछे मानवीय भूमिका

बुधवार को मुकदमे की सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केवल 0.1% वन्यजीव क्षेत्र जंगल में लगी आग के कारण प्रभावित हुए। दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई 15 मई को होगी।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदिप मेहता की पीठ में इस मामले की सुनवाई हो रही है। सरकार ने बताया कि साल 2023 में जंगल में आग लगने की 398 घटनाएं हुई थीं, जिसके पीछे इंसानों का हाथ था।

वन्यजीव क्षेत्र के महज 0.1 फीसदी हिस्से में लगी आग; अदालत की दो टूक- नाकाफी हैं प्रयास

उत्तराखंड सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जंगल में आग लगने की घटनाओं से सख्ती से निपटा जा रहा है। अब तक 350 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। 62 लोगों को नामजद किया गया है। सरकारी वकील के मुताबिक लोगों का मानना है कि उत्तराखंड का 40 फीसदी हिस्सा आग की चपेट में है। हालांकि, वन्यजीव क्षेत्र के महज 0.1 फीसदी हिस्से में आग लगी है। दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि क्लाउड सीडिंग या प्राकृतिक बारिश पर निर्भर रहना इस परेशानी का निदान नहीं है। अदालत ने साफ किया कि सरकार को और अधिक उपाय करने होंगे।

 

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