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नई दिल्ली: 'बातें कम, काम ज़्यादा'.. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के कार्यकाल को कम शब्दों में समझना चाहें तो शायद यह कहना सबसे सही होगा। जजों के बारे में पुरानी कहावत है कि वह अपने फैसलों या आदेशों के जरिए ही बोलते हैं। 13 मई को रिटायर हो रहे खन्ना हमेशा इस परंपरा का पालन करते नजर आए। वह अपनी बात आदेशों और फैसलों के जरिए ही रखते रहे। उन्होंने कभी कोई ऐसी टिप्पणी नहीं की जो चर्चा का विषय बनी।

चीफ जस्टिस खन्ना का व्यक्तित्व अपने पूर्ववर्ती चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ से बिल्कुल अलग था। चंद्रचूड़ खुलकर अपने विचार रखते थे, वहीं खन्ना अल्पभाषी थे। 11 नवंबर, 2024 को भारत के मुख्य न्यायाधीश बने खन्ना का कार्यकाल भी मात्र 6 महीना ही रहा, लेकिन उन्होंने इसे अपने ठोस निर्णयों से प्रभावशाली और यादगार बना दिया। यह निर्णय उन्होंने न्यायिक और प्रशासनिक दोनों स्तर पर लिए।

पहले उनके प्रशासनिक फैसलों की ही बात कर लेते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर जले हुए कैश की बरामदगी के मामले में उन्होंने बेहद सख्त और पारदर्शी रवैया अपनाया।

उन्होंने मामले से जुड़े सभी तथ्य सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिए। 3 जजों की कमिटी बना कर जांच करवाई। जब रिपोर्ट में वर्मा पर लगे आरोपों की पुष्टि हुई तो उनसे पद छोड़ने को कहा। वर्मा के इंकार के बाद रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी ताकि संसद में महाभियोग के जरिए उन्हें पद से हटाया जा सके।

न्यायपालिका के मुखिया की भूमिका

ऊपर लिखी गई बात पढ़ने में चाहे जितने भी सरल लगे पर यह इतना आसान नहीं होता। न्यायपालिका के मुखिया के रूप में चीफ जस्टिस खन्ना ने यह तुरंत समझ लिया कि जज के घर में कैश का मिलना लोगों के विश्वास को कमजोर करने वाली बात है। उन्होंने उच्च स्तर की पारदर्शिता और जवाबदेही दिखा कर लोगों का भरोसा बनाए रखने का प्रयास किया। इस तरह का निर्णय एक बेहद सख्त और ईमानदार व्यक्ति ही ले सकता है।

संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया

इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को संपत्ति का पूरा ब्यौरा सार्वजनिक करने पर सहमत किया। 1 अप्रैल 2025 को उनकी अध्यक्षता में हुई फुल कोर्ट बैठक में इस प्रस्ताव को पारित किया गया। खास बात यह है कि इस प्रस्ताव के चलते भविष्य में भी सुप्रीम कोर्ट के जज अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा करते रहेंगे।

कॉलेजियम सिफारिशों को सामने रखा

जजों की नियुक्ति में भेदभाव और भाई-भतीजावाद के आरोपों का भी चीफ जस्टिस खन्ना ने बिना कुछ कहे जवाब दिया। उन्होंने पिछले 3 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की तरफ से केंद्र सरकार को भेजी गई सिफारिशों को सार्वजनिक कर दिया। इसमें यह जानकारी भी दी गई कि इन लोगों में से अनुसूचित जाति/जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिला उम्मीदवारों की संख्या क्या थी। साथ ही यह भी साफ किया गया कि कि इनमें से कितने लोग किसी जज के रिश्तेदार हैं।

धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों पर रोक

जस्टिस खन्ना ने अपने न्यायिक फैसलों और आदेशों के जरिए भी गहरी छाप छोड़ी। पुराने मंदिरों पर दावे के लिए देश भर में दाखिल हो रहे मुकदमों पर उन्होंने रोक लगा दी। उन्होंने साफ कर दिया कि 1991 के प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक न तो नए मुकदमे दायर हो सकते हैं, न ही पहले दायर हो चुके मुकदमों में कोई अदालत प्रभावी आदेश दे सकती है।

वक्फ एक्ट विवाद पर विराम

वक्फ संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध पर भी चीफ जस्टिस खन्ना के एक कदम ने विराम लगा दिया। उन्होंने कानून की कुछ धाराओं पर अंतरिम रोक लगाने की मंशा जाहिर की। इसके बाद केंद्र सरकार ने खुद ही कह दिया कि फिलहाल किसी भी वक्फ संपत्ति को डिनोटिफाई नहीं किया जाएगा। साथ ही, वक्फ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल में अभी कोई नई नियुक्ति नहीं होगी।

बड़े वकीलों को तरजीह नहीं

सुप्रीम कोर्ट के कार्यकलाप को लेकर यह शिकायत की जाती रही है कि वहां बड़े वकीलों को प्राथमिकता मिलती है। उनके अनुरोध पर मामलों की जल्द सुनवाई कर ली जाती है। चीफ जस्टिस खन्ना ने इस पर विशेष ध्यान दिया। उनके दौर में जल्द सुनवाई के मौखिक अनुरोध की व्यवस्था बिल्कुल रोक दी गई। उन्होंने बड़े से बड़े वकील को मौखिक अनुरोध करने से मना किया और कहा कि वह तय प्रक्रिया के मुताबिक रजिस्ट्री को सुनवाई को लेकर अनुरोध पत्र दें।

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