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मंत्री शाह को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जांच के लिए एसआईटी गठित

नई दिल्ली: स्थापित प्रक्रिया से अलग हटते हुए केंद्र सरकार ने एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की एक सिफारिश को वापस भेज दिया है। भारत के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाला कॉलेजियम दोनों बार सरकार की आपत्तियों को नामंजूर करते हुए पटना हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त करने की अपनी सिफारिश पर कायम है। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने आज (बुधवार) कहा कि कॉलेजियम ने नवंबर, 2013 में राज्य न्यायिक सेवा के एक सदस्य को पटना हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने तब फाइल कॉलेजियम को लौटाकर उससे फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। सरकार का कदम आईबी की रिपोर्ट पर आधारित था। इस बीच जब फाइल सरकार के पास लंबित थी, 13 अप्रैल, 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम अधिसूचित किया गया। लेकिन जब कॉलेजियम प्रणाली को निष्प्रभावी करने वाले नये कानून को उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 16 अक्तूबर को रद्द कर दिया था तो इसके साथ शीर्ष अदालत तथा 24 उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की पुरानी व्यवस्था वापस आ गयी। कॉलेजियम प्रणाली की वापसी के बाद कानून मंत्रालय ने कॉलेजियम द्वारा की गयी पुरानी सिफारिशों पर विचार करने का फैसला किया।

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आज इस बात का पक्ष लिया कि उनकी पार्टी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबला करे क्योंकि वह चुनौती बने हुए हैं। रमेश ने कहा, ‘वह चुनौती बने हुए हैं। हमें सीधे उनसे मुकाबला करना होगा। जीएसपीसी घोटाले में मुद्दा मोदी हैं और 20,000 करोड़ रुपये का घोटाला है।’ गुजरात कांग्रेस के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले महीने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की थी और गुजरात राज्य पेट्रोलियम निगम (जीएसपीसी) में 19760 करोड़ रुपये के कथित घोटाले के मामले में न्यायिक जांच की मांग की। रमेश ने यह भी कहा कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले दो साल में किये गये वादों और किये गये कामकाज में तथा कथनी और करनी में बड़ा अंतर रहा है और विपक्ष को इसे पूरी तरह उजागर करना जरूरी है। मोदी के प्रखर आलोचक रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री से सीधे टक्कर लेते हुए कांग्रेस को समझना जरूरी है कि पार्टी वैचारिक लड़ाई लड़ रही है जो पूरी तरह अलग है। रमेश ने कहा कि भाजपा और सरकार में प्रधानमंत्री के आशीर्वाद और मंजूरी के बिना कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा, ‘यह सोचना सही नहीं है कि मोदी अलग हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय में जो हो रहा है, पाठ्यपुस्तकों को दोबारा लिखा जा रहा है, आईआईटी की स्वायत्तता समाप्त की जा रही है। ये सब पीएम मोदी का ही तो आशीर्वाद है।’ रमेश ने कहा, ‘सुब्रमण्यम स्वामी के हमलों को उनका आशीर्वाद रहा है। मोदी के आशीर्वाद और मंजूरी के बिना भाजपा और सरकार में पत्ता भी नहीं हिलता।’ गौरतलब है कि जयराम रमेश कांग्रेस के पहले नेता थे जिन्होंने 2014 में लोकसभा चुनावों से एक साल पहले 2013 में कहा था कि मोदी उनकी पार्टी के लिए प्रबंधन के स्तर पर और वैचारिक स्तर पर चुनौती बने हुए हैं।

वॉशिंगटन: पठानकोट हमले को मुंबई में 26/11 को हुए हमले की तरह लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक स्पष्ट संदेश में पाकिस्तान से इसके षड्यंत्रकारियों को सजा देने के लिए कहा और जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा तथा डी कंपनी जैसे पाक स्थित समूहों से पेश आतंकी खतरों के खिलाफ भारत के साथ खड़ा रहने का संकल्प जताया। राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल व्हाइट हाउस में मुलाकात के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया है ‘उन्होंने (ओबामा और मोदी ने) पाकिस्तान से 2008 के मुंबई हमले और 2016 के पठानकोट हमले के षड्यंत्रकारियों को न्याय के दायरे में लाने के लिए कहा।’ बयान के अनुसार, बैठक के दौरान मोदी और ओबामा ने माना कि आतंकवाद से मानव सभ्यता को लगातार खतरा बना हुआ है। उन्होंने पेरिस से लेकर पठानकोट तक और ब्रसेल्स से लेकर काबुल तक हुए हालिया आतंकी हमलों की निंदा की। आगे बयान में कहा गया ‘उन्होंने दुनिया में कहीं भी होने वाले आतंकवाद और उनकी सहयोगात्मक अवसंरचना के षड्यंत्रकारियों को न्याय के दायरे में लाने के लिए द्विपक्षीय और समान सोच रखने वाले देशों के साथ अपने प्रयासों को दोगुना करने का संकल्प जाहिर किया।’ मुलाकात के दौरान, ओबामा ओर मोदी ने ‘अलकायदा, दाएश ( आईएसआईएल) जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा, डी कंपनी और उनसे संबद्ध समूहों जैसे चरमपंथी गुटों से आसन्न आतंकी खतरों के खिलाफ सहयोग मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई जिसमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित किए गए संगठनों के खिलाफ सहयोग गहरा करना शामिल है।’

नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने लोकसभा और राज्य में विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के सरकार के विचार का समर्थन किया है, लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि इसपर काफी खर्च आएगा और कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाने और कुछ का घटाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। विधि मंत्रालय ने आयोग से कहा था कि वह संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पर अपने विचार दे, जिसने एक साथ लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कराने की वकालत की थी। मई में विधि मंत्रालय को अपने जवाब में आयोग ने कहा कि वह प्रस्ताव का समर्थन करती है लेकिन इसपर नौ हजार करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा। एक संसदीय समिति के समक्ष गवाही देते हुए आयोग ने इसी तरह की ‘कठिनाई’ का इजहार किया था। संसदीय समिति ने ‘लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने पर पिछले साल दिसम्बर में अपनी व्यवहार्यता रिपोर्ट’ सौंपी थी। आयोग ने सरकार के साथ-साथ समिति से कहा है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और वोटर वेरिफायेबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीन खरीदने की आवश्यकता होगी। चुनाव आयोग के हवाले से संसद की स्थायी समिति ने कहा था, ‘एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग का अनुमान है कि ईवीएम और वीवीपीएटी की खरीद के लिए 9284.15 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।’

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