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(आशु सक्सेना) उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के खिलाफ बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बनाने की कवायद शुरू हो गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जद(यू) के अध्यक्ष शरद यादव ने राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह से मुलाकात की है। चौधरी अजीत सिंह के घर दोपहर के भोजन पर हुई मुलाकात में उत्तर प्रदेश चुनाव में संयुक्त रुप से काम करने पर शुरुआती सहमति बन गई है। गौरतलब है कि फिलहाल उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, प्रमुख प्रतिपक्ष बहुजन समाज पार्टी और भाजपा के बीच माना जा रहा है, जद(यू) प्रदेश में खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में बजूद रखने वाले नेता राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह को साथ जोड़कर चुनाव में एक और दावेदारी खड़ी करने की कोशिश कर रहा है। दिलचस्प पहलू ये है कि जिस तरह नीतीश कुमार को बिहार का विकास पुरुष माना जाता है, कमोबेश उसी तरह की छवि अखिलेश यादव की उभरी है।फ़िलहाल फर्क सिर्फ इतना है कि नीतीश कुमार इस बार नए गठबंधन के साथ फिर सत्ता पर काबिज़ हैं और अखिलेश को बिना किसी गठबंधन के सत्ता में वापसी का पहला इम्तहान पास करना है।
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(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चहेते अमित शाह को दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी की कमान संभलवाकर यह साबित कर दिया कि अभी पार्टी पर उनकी पकड़ बरकरार है। लेकिन बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में अमित शाह की दूसरी पारी कांटों भरी नजर आ रही है। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में शर्मनाक हार का सामना कर चुके अमित शाह को 2017 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तक कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में अग्नि परीक्षा से गुजरना है। उनकी पहली परीक्षा असम और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में है। गौरतलब है कि शाह ने उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव के तौर पर लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 सीटों में से पार्टी और घटक दल को 73 सीटों पर जीत दिलवाकर करिश्मा कर दिखाया था। उनको इस करिश्में के इनाम के तौर पर पार्टी की कमान सौंपी गई थी। उनके नेतृत्व में पार्टी को छह राज्यों में सरकार बनाने में कामयाबी मिली।
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(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डेढ साल के कामकाज पर जनता ने अपना फैसला सुना दिया है। दिल्ली के बाद बिहार में मोदी की लगातार दूसरी शर्मनाक हार सेे यह साबित हो गया है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी का जादू अब प्रधानमंत्री बनने के बाद लगभग खत्म हो गया है। बिहार विधानसभा चुनाव को प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ कर लड़ा था। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में केंद्र सरकार के कामकाज पर मोहर लगाने की गुहार की थी। उन्होंने कहा था कि देश के विकास के लिए दिल्ली को आप लोकसभा चुनाव में पहले ही भाजपा को सौंप चुके हैं, अब बिहार के विकास के लिए यहां भी भाजपा को सत्ता सौंपें। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव को खुद बनाम नीतीश कुमार बना दिया था। लिहाजा जनता ने बिहार के विकास पुरूष नीतीश कुमार के सिर पर ताज रख दिया। साथ ही प्रधानमंत्री को यह सबक भी सिखा दिया कि इंसान का पेट भाषण से नही बल्कि अनाज से भरता है। बिहार में शर्मनाक हार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगला इम्तिहान ओर कठिन है। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए मोदी को अगली चुनावी जंग कांग्रेस शासित राज्य असम में लड़नी है।
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(आशु सक्सेना) बिहार विधानसभा चुनाव में हार से भयभीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे चरण के मतदान से पहले अचानक विकास का जाप छोड़कर चुनाव को सांप्रदायिक बनाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव दलितों और पिछड़ों के आरक्षण में से पांच फीसदी की कटौेती करके अल्पसंख्यकों यानि मुसलमानों को देने का षड़यंत्र करने का प्रयास करेंगे। दिलचस्प पहलू यह है कि महागठबंधन की किसी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में ऐसा कोई वादा नही किया है। फिर नरेंद्र मोदी की आधार पर इसको चुनावी मुद्दा बना रहे है। दरअसल दिल्ली विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार झेलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार का चुनाव किसी भी हालात में जीतना चाहते हैं। बिहार में विकास का नारा देकर वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शिकस्त नही दे सकते, यह एहसास मोदी को हो गया है।
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